File:Dr.Prashant Singh.png

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एक ऐसा दौर जिंदगी का, जब मैं करोड़ों के कर्ज में डूबा हुआ था, खुद को कमरे में कैद रखा और फिर उठा पर कभी हार नहीं मानी और आज खड़ी की करोङो की कंपनी। आज कंपनी के पूरे भारत में 10 ब्रांच हैं। हलाकि जीरो से 10 ब्रांच तक पहुंचने का ये सफर आसान नहीं था। मेरी पूरी कामयाबी के बारे में और मेरी असफ़लतों से सीख लेने के लिए मैं आपको अपने बचपन में ले चलता हूँ। नमस्ते मेरा नाम डॉ प्रशांत सिंह है। मैं तेज लोजिस्टिक्स फ्रेट एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड का कोफाउंडर हूँ। आज मैं इस जोश टॉक के माध्यम से अपनी जिंदगी की इम्पोर्टेन्ट लेशन्स सिखाऊंगा जिससे की आप ये गलतियां कभी न करें। तो चलिए बचपन से शुरू करते हैं। मेरा जन्म एक सामान्य जाति के गरीब परिवार में हुआ था और परिवार की हालत काफी सख्त थी हम गरीबी में जीते थे। गांव में लगभग सभी के घर पक्के के थे और हमारे छप्पर और टीने के हुआ करते थे। बारिश में तो खाना बनाने तक का भी जगह नहीं रहता था माताजी बड़ी मुश्किल से हमारे लिए खाना बनती थीं। भाइयों में, मैं सबसे बड़ा था तो मेरी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा थी मैं अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझता था।मैं बचपन से एक एवरेज स्टूडेंट था। मैंने गांव के प्राइमरी पाठशाला से स्कूलिंग की थी जंहा क्लास 6 th में हमे ABCD सिखाया गया था। साथ ही साथ हमारे घर की कंडीशन बहुत ही ख़राब थी उस समय गांव के कोटेदार से मिटटी का तेल ३ लीटर पर मंथ मिलता था उसी में हमे पूरा महीना गुजरा करना पड़ता था गांव में लाइट नहीं थी दिए की रौशनी में ही पढ़ना होता था। कई बार तो माता जी को बिना रौशनी के ही खाना बनाना पड़ता था । दिन में स्कूल के बाद खेती बारी के काम से छूट कर रात को जानवरों को खिलने पिलाने के बाद ही जो भी थोड़ा समय बचता था उसमें पढाई करनी होती थी। हलाकि मेरे आसपास पढाई का कोई माहौल नहीं था। कक्षा दसवीं में मेरे केवल ४८ प्रतिशत ही मार्क्स आये फिर मैंने पढाई छोड़ने का निश्चय किया और मुंबई में जाकर ट्रक की ड्राइविंग

सीखना चाहता था पर शायद भगवान मेरे लिए कुछ और ही लिखे थे मैंने १२ में थोड़ी ठीक पढाई की और फर्स्ट डिवीज़न में पास किया फिर जब सभी घर वालो ने बड़ी उम्मीद के साथ मेरे ऊपर भरोसा किया और मुझे आगे की पढाई के लिए चेन्नई भेज दिया। मुझे चेन्नई में भेजने के चक्कर में घर का बहुत सारा समान बिक गया था उस समय मेरे पास न ही मोबाइल फ़ोन था और न ही बैंक का अकाउंट था ।मैं फर्स्ट टाइम किसी बड़े शहर में गया था। मैं हिंदी मध्यम में पढ़ा हुआ, UP के एक छोटे से शहर बस्ती के एक अविकसित गांव का रहना वाला था। चेन्नई पहुंचने पर मुझे एक अलग दुनिया दिखी। एक ऐसी दुनिया जंहा सब इंग्लिश में बात करने वाले बच्चे थे जो की बहुत बड़ी बड़ी फॅमिली से बिलोंग करते थे हर तरफ इंग्लिश का माहौल,क्लासी कपडे,ऊँचा रहन सहन और उन सभी के बीच मैं अकेला जिसके लिए कुछ खाने के लिए भी सोचना पड़ता था। वँहा पर जाने के बाद मैंने लोगों से सम्बन्ध बना कर किसी भी तरीके से अपने आप को व्यवस्थित किया एडमिशन लिया उसके बाद मैंने देखा की वँहा खर्चे बहुत था फिर रूम शेयरिंग में रहने लगा। कैसे करके कम खर्चे में गुजरा हो सके ये सोचना शुरू किया ,लेकिन घर से जो हर महीने पैसा आता था वो बहुत कम था सब लोगो कोशिश करते थे की कैसे करके मुझे ज्यादा से ज्यादा पैसे भेज सके पर वो 1000-1500 से ज्यादा इकठ्ठा नहीं कर पाते थे। इसके लिए भी पिता जी 100 से 150 Km साइकिल चलाकर दूध बेचने जाया जाया करते थे पर वो भी पैसा प्रयाप्त नहीं होता था ,क्यूंकि घर पर परिवार की संख्या काफी ज्यादा थी। फिर जब मेरा गुजरा इस तरह से नहीं हो पा रहा था तो मैंने बड़े बड़े इवेंट में काम करना चालू किया जिससे मुझे प्रतिदिन के 200 से 300 रूपये मिल जाया करते थे। इन्ही सब का रिजल्ट रहा मै काफी विषयों में फेल हो गया था। मेरी हिम्मत टूट चुकी थी क्यूंकि घर पर पैसे का भी इतना सपोर्ट नहीं था और मैं पढाई में भी इतना मजबूत नहीं था की मै अपनी पढाई पूरी कर सकूँ और वँहा पर जो मेरे लिए एडवर्स माहौल था उससे लड़ सकूँ। उस समय मेरे बड़े पापा जी स्वर्गीय श्री बालेश्वर सिंह जी ने बहुत समझाया ,मुझे बहुत ज्यादा motivate किया, काफी हिम्मत दी और आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया । एक बात जो मै आप लोगों के साथ शेयर करना चाहूंगा की जब भी कुछ अच्छा खाता था या फिर अच्छा पहनता था तो हमेशा एक ही भाव मन में आता था की न जाने मेरे परिवार वाले कैसी रूखी सुखी खा रहे होंगे कैसे गुजारा कर रहे होंगे।

मैंने सोचा था की मै अब जी जान लगा कर पढाई करूँगा और साथ ही साथ पैसे कमाने के लिए की tutions क्लासेज लूंगा पर मेरे दिमाग में एक बात बहुत क्लियर थी की अब मुझे फेल नहीं होना है। ऐसा ही हुआ, BE Aeronautical Engg पूरा क्लियर हुआ इवन काफी विषयों में मैंने टॉप भी किया और फिर एक हिम्मत मिली, लगा की मै कुछ भी कर सकता हूँ। धीरे धीरे चीज़ें सँभालने लगीं और मै आगे बढ़ने लगा। जब मैंने ग्रेजुएशन खत्म की तब तक मै एक ठीक ठाक इनकम करने लगा था। साथ ही साथ मेरा छोटा भाई अखिलेश्वर प्रताप सिंह ने भी ग्रेजुएशन कर लिया था और थोड़ा बहुत वो भी कमाने लगे थे । अब तक परिवार की हालत बहुत बुरी से बुरी स्थिति में आ चुकी थी। इसके बाद मैंने M-Tech की पढाई चालू की और साथ ही साथ tutions भी लेने लगा। घर की हालत अब धीरे धीरे और सुधरने लगी। अच्छा एक घटना जो सबसे ज्यादा इन्स्पिरिंग था मेरे लिए वो ये की मेरा छोटा भाई प्राइमरी में पढता था लगभग 6 साल का था उसको स्कॉलर्शिप के पैसे मिले 300 घर पर लेकर उसने पिता जी से कहा की ये पैसे भैया को भेज दो उनके पास पैसे नहीं होंगे। आज भी जब वो दिन सोचता हूँ तो द्रवित हो जाता हूँ । मैंने 2016 में पहला स्टार्टअप पायनियर शुरू किया। जब कंपनी स्टार्ट की थी तो ये सोचा था की इसे बहुत बड़े लेवल पर लेकर जाऊंगा तो बड़े लेवल के चक्कर में मैंने मेरे पास की सारी सेविंग्स खत्म कर थी। हमे 10-15 स्टार्टिंग में प्रोजेक्ट मिले पर फाइनेंसियल मैनेजमेंट न होने के चक्कर में हम घाटे में आ गए और हमे कंपनी बंद करनी पड़ी। बाद में मुझे समझ में आया की हमे लीन मैनेजमेंट करना चाहिए था एक चीज़ कोई चालू करके उसको बढ़ाना चाहिए था और फिर धीरे धीरे और चीज़ें ऐड करनी चाहिए थीं। लेकिन मैंने जो गलती की थी वो ये की मैंने एक साथ बहुत सी चीज़ें चालू कर दी थी और जिसकी वजह से मैं काफी घाटे में गया और कंपनी डूब गयी। एक चीज़ की और कमी थी मेरे पास, वो थी फाइनेंस का नॉलेज। इस कंपनी के डूबने के बाद मैंने हार नहीं मानी। इन गलतियों को दुबारा न दोहराने का प्रण लेकर मैंने फिर से एक दूसरा स्टार्टअप किया। एक्चुअली M-Tech के बाद मैंने Phd के टाइम पर एक यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर काम करना शुरू किया था। यूनिवर्सिटी नई नई खुली थी तो उसको खोलने से आगे बढ़ने तक के लगभग 6 साल के सफर में यूनिवर्सिटी कैसे खोलते हैं? कैसे रन होता है? कैसे आगे

बढ़ाना है?ये सब समझ चूका था। हम पांच लोग मिल कर इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। अब इसे भी किस्मत की मार कह लो या लोगों के ऊपर यक़ीन। जिंदगी ने एक बार फिर से मुँह के बल गिरा दिया। ये प्रोजेक्ट रुक गया साथ ही साथ जिंदगी काफी पीछे चली गयी। वंहा से एक चीज़ समझ आयी की रिश्ता कितना भी गहरा क्यों न हो, पैसे के मामले में कोई कभी भी बदल सकता है। एक साल का गैप लेने के बाद मैंने फिर से अद्ध्यावेश प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी खोली। वो एक ऐसी जर्नी थी जिसमे सारे फाउंडर्स अलग अलग जगह कुछ न कुछ वर्किंग में थे। जिसके वजह से काम टाइम पर न कर पाना और बिज़नेस को कोई भी फुल टाइम नहीं दे रहा था। सभी एक जगह पर नहीं थे। इसके फलस्वरूप ये हुआ की चीज़ें लाइनप नहीं हो पायीं। प्रोजेक्ट्स काफी मिले पर टाइम पर डिलीवर नहीं हो पायी। जिसकी वजह से ये भी डूब ही । इतनी बार हार के बाद ज़िन्दगी ने काफी कुछ सीखा दी थी साथ ही साथ अब और एक बार नहीं हार सकता था मै। 2018 में फिर मैंने मार्किट रिसर्च शुरू किया की किस फील्ड में अगला बिज़नेस स्टार्ट किया फिर हमारा एक भाई अखिलेश्वर सिंह उस बीच कार्गो में काम शुरू किया था। मैंने उसके बारे में सुना मार्किट रिसर्च के बाद ये पता चला की अभी आने वाले समय में ये फील्ड तेजी से ओर्गनइजेड होगा अभी काफी स्कोप है ग्रोथ का धीरे धीरे मैंने अपने गांव और सभी भाइयों को भी ऐसी बिज़नेस जोड़ना शुरू किया और आज के टाइम पर हमारे 10 ब्रांच हैं। हमने अपने कंपनी में गुड्स डिलीवरी के लिए एक उन्नत तकनीक विकसित की है उदाहरण के लिए अगर मुझे दिल्ली से कोई माल लेना है तो हमारी कंपनी आपको भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों में 8-10 घंटे के भीतर समान को डिलीवर कर देती है इसके अलावा तेज ने उत्कृष्ट व्यापक नेटवर्क कवरेज और निगरानी का सिस्टम विकसित किया है हम सभी देशवासियों के लिए आयात/निर्यात वन-स्टॉप समाधान लेकर आए हैं जिससे देश के किसी भी हिस्से में कोई भी हमें कॉल करके दुनिया के किसी भी हिस्से में आयात /निर्यात कर सकता है। अगर आप भी एंटरप्रेनर बनना चाहते हैं तो मैं आपको अपनी इस कहानी के माध्यम से सीख देना चाहता हूँ जो आपके लिए काफी उपयोगी सिद्ध होगी

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current15:23, 18 January 2023Thumbnail for version as of 15:23, 18 January 2023597 × 669 (632 KB)Dr.Prashant Singh K (Talk | contribs)एक ऐसा दौर जिंदगी का, जब मैं करोड़ों के कर्ज में डूबा हुआ था, खुद को कमरे में कैद रखा और फिर उठा पर क...
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